कनखियों से छुपते- छुपाते तुझे हर बार देखा है ;
चाहे ना हो मयस्सर दीदार तेरा ; घंटो मैंने इंतज़ार देखा है
इनकार किया था तूने यूँ बंद पलकों के साये में;
मालूम था शायद तुझे भी, कि आँखों में मैंने तेरी इज़हार देखा है।
- कपिल कुमार गुप्ता 'दीवाना' (सितम्बर २३, २०१३)
चाहे ना हो मयस्सर दीदार तेरा ; घंटो मैंने इंतज़ार देखा है
इनकार किया था तूने यूँ बंद पलकों के साये में;
मालूम था शायद तुझे भी, कि आँखों में मैंने तेरी इज़हार देखा है।
- कपिल कुमार गुप्ता 'दीवाना' (सितम्बर २३, २०१३)
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